प्यार की जीत Khahani in Hindi 

कहानी इन हिंदी - अनुज 8 साल का सराती लड़की था।  उस का ध्यान हर समाये खेल वो टीवी कार्टून देखने में लगा रहता था।  वह टीवी कार्टून देखने में लगा रहता था। वह अपने कपडे, जुते, किताबों इधरउधर छोड़ देता था।  उस के सरे काम मां को करने पड़ते थे.

प्यार की जीत Khahani in Hindi | Hindi Kahani


उस की बेहेन प्रीती उस से 5  साल बड़ी थी. वह बहुत समझदार थी. पढाई में भी आगे रहती तथा घर में माँ के काम में भी हाथ बटाती।जहा अनुज को घर समाये ड़ांट पड़ती रेहती, वहीं प्रति की सब जगह तारीफ होती थी. आकर प्रति का उद्धरण दे कर अनुज को समझाया जाता था.


धीरेधीरे अनुज को प्रीति पर गुस्सा आने लगा. वह उस से चिढ़ने लगा. इस कोशिश में रहने लगा कि उस के काम बिगाड़े. वह पेंटिंग बनाती तो उस पर पानी डाल देता. उस की कौपी फाड़ देता, खिलौने तोड़ देता.


प्रीति उसे छोटा समझ कर हंसी में उड़ा देती थी. रक्षाबंधन आने वाला था.


प्रीति बहुत खुश थी. उस ने अपने प्यारे भाई के लिए मोती, रिबन, लैस ला कर अपने हाथों से सुंदर सी राखी बनाई. पौकेटमनी के पैसे जोड़ कर अनुज की पसंद की चौकलेट भी लाई.


अनुज ने उसे राखी बनाते देखा तो चिढ़ गया. 'हर समय डांट पड़वाती है. राखी बनाने का नाटक कर रही है. मुझे नहीं बंधवानी इस से राखी.' उस ने मन ही मन तय कर लिया. रक्षाबंधन से पिछली रात को प्रीति के सोने के बाद अनुज उस की बनाई राखी को तोड़ ने दिया और खुश हो कर सो गया.


अगली सुबह जब प्रीति राखी के लिए थाल सजाने लगी तो टूटी राखी देख कर वह सब समझ गई. उस की आंखों में आंसू आ गए, तभी मां आ गईं. प्रीति के हाथ में टूटी राखी देख कर उन की समझ में भी सारी बात आ गई. वे अनुज पर गुस्सा होने लगीं.


"उसे इस की सजा जरूर मिलेगी, इस गलती के लिए. मैं अनुज को माफ नहीं करूंगी. आज जब हम बुआ के घर जाएंगे, यह अकेला घर में रहेगा."


मां की बात सुन कर तो अनुज के होश उड़ गए. उसे बुआ के घर जाना बहुत पसंद था. एक तो उन के बेटे राजा 'से उस की खूब पटती थी, दूसरे बुआ के हाथ की सेवई और पकौड़े उसे बहुत पसंद थे, आज के दिन तो ये दोनों चीजें बुआ जरूर बनाती थीं. वह बुरी तरह घबरा गया.


भाई का उतरा हुआ मुंह देख कर प्रीति बोली, "नहीं मां, अनुज ने राखी नहीं तोड़ी. इसे कुछ मत कहिए. राखी मेरे हाथ में लेते ही टूट गई. शायद मैं ने इसे ठीक से नहीं चिपकाया था.” प्रीति ने तुरंत बाजार से दूसरी राखी ला कर अनुज को बांध दी.


उस दिन बुआ के घर जा कर भी अनुज का मन नहीं लगा, न उसे राजा के साथ खेलना अच्छा लगा, न बुआ के हाथ के बने पकवान, उसे अपनी दीदी पर प्यार आ रहा था.


“कितनी अच्छी हैं दीदी. सब ठीक ही तो तारीफ करते हैं इन की, मैं ने इन्हें बिना बात इतना सताया फिर भी मुझे सजा से बचा लिया. अब से मैं भी इन्हीं की तरह बन कर दिखाऊंगा." "


रात को घर आ कर अनुज ने मां, पापा और दीदी ने सब के सामने पूरी बात बता कर माफी मांगी और वादा किया कि खुद भी दीदी जैसा बनने की. कोशिश करेगा.


मां मुसकरा दीं और बोलीं, “बेटा, मैं तो सुबह ही सब कुछ समझ गई थी पर इसलिए चुप रही कि तुम्हें सुधारने की प्रीति की कोशिश बेकार न चली जाए और देखा आखिर प्यार की जीत हो ही गई.”


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